इस विधि में विशेष औषधीय पाउडर से मालिश की जाती है जिसमें प्रभावित व्यक्ति के सारे दोषों को संतुलित करने वाली जड़ी-बूटियों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है।
पाउडर को उपचार से पहले गर्म किया जाता है। उसके बाद इससे प्रभावित हिस्से की नीचे से ऊपर की ओर गहराई से मालिश की जाती है।
यह प्रक्रिया 45 से 60 मिनट तक चलती है। इसके बाद मरीज आधा घंटा आराम करके स्नान कर सकता है।
यह कफ दोष और शरीर में जमा अतिरिक्त चर्बी को कम करके मधुमेह का उपचार करती है।
धान्य अम्ल धारा
इसमें गर्म औषधीय तरल को प्रभावित हिस्से या पूरे शरीर पर डाला जाता है। धारा चिकित्सा दो प्रकार की होती है- परिषेक (शरीर के किसी विशेष भाग पर औषधीय तरल या तेल डालना) और अवगाहन (औषधीय काढ़े से भरे टब में बैठना)।
धान्य अम्ल में धान्य (अनाज) और अम्ल (सिरका) से गुनगुना औषधीय तरल तैयार किया जाता है। यह कफ और वात दोष को संतुलित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
सर्वाग अभ्यंग और स्वेदन
सर्वाग अभ्यंग तेल को पूरे शरीर पर डालने और मसाज करने की एक प्रक्रिया है। यह शरीर की लसिका प्रणाली को उत्तेजित करती है, जो कि कोशिकाओं को पोषण की आपूर्ति और शरीर से जहरीले तत्व निकालने का काम करती है।
तेल मालिश के बाद स्वेदन (पसीना लेन की विधि) के जरिए शरीर से अमा (विषैले पदार्थ) को प्रभावी तरीके से पूरी तरह से बाहर करने का काम किया जाता है।
स्वेदन से शरीर की सभी नाड़ियां खुल जाती हैं और विषैले तत्व रक्त से निकलकर जठरांत्र मार्ग में आ जाते हैं। यहां से विषाक्त पदार्थों को आसानी से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
स्वेदन चार प्रकार का होता है – तप (सिकाई), जिसमें एक गर्म कपड़ा शरीर के प्रभावित अंग पर रखा जाता है। उपनाह, जिसमें चिकित्सकीय जड़ी-बूटी के मिश्रण से तैयार लेप शरीर पर लगाया जाता है। ऊष्मा, जिसमें संबंधित दोष के निवारण में उपयोगी जड़ी-बूटियों को उबालकर उसकी गर्म भाप दी जाती है। धारा, जिसमें गर्म द्रव्य या तेल को शरीर के ऊपर डाला जाता है।
सर्वांग क्षीरधारा
शिरोधारा, एक ऐसा आयुर्वेदिक उपचार है जिसमें दूध, तेल जैसे विभिन्न तरल पदार्थों और जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाकर लयबद्ध तरीके से सिर के ऊपर से डाला जाता है।
सर्वांग क्षीरधारा को तेल स्नान भी कहते हैं। इसमें उचित तेल को सिर और पूरे शरीर पर डाला जाता है।
वमन कर्म
यह पंचकर्म थेरेपी में से एक है जो पेट को साफ कर नाड़ियों और छाती से उल्टी के जरिए अमा और बलगम कोबाहर निकालती है।
इसमें मरीज को नमक का पानी, कुटज (कुर्चि) या मुलेठी और वच दिया जाता है। इसके बाद वमन चिकित्सा के प्रभाव को बढ़ाने के लिए पिप्पली, सेंधा नमक, आमलकी (आंवला), नीम, मदनफल जैसी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है।
वमन कर्म बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गो के लिए नहीं होता। इसके अलावा यह चिकित्सा हाई ब्लड प्रेशर, उल्टी, दिल, पेट से संबंधी बीमारियों, मोतियाबिंद, बढ़े हुए प्लीहा, कब्ज की समस्या और कमजोरी से ग्रस्त व्यक्ति पर नहीं करनी चाहिए।
इसका इस्तेमाल प्रमुख तौर पर कफ से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।
वमन कर्म के बाद हाथ, मुंह और पैरों को अच्छी तरह से धोना और जड़ी-बूटियों के धुएं को सांस से अंदर लिया जाता है। इसके बाद पर्याप्त नींद या आराम करने की सलाह दी जाती है। नींद से उठने के बाद हाथ, चेहरा और पैर दोबारा धोते हैं।
विरेचन कर्म
पंचकर्म में विरेचन कर्म भी प्रमुख है और इसका बेहतरीन प्रभाव देखा जाता है।
विभिन्न रेचक जैसे कि सेन्ना, रुबर्ब या एलोवेरा देकर शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।
विरेचन कर्म का इस्तेमाल मधुमेह के अलावा पेट के ट्यूमर, बवासीर, अल्सर, गठिया आदि केलिए भी किया जाता है।
अगर आपका बुखार हाल ही में ठीक हुआ है, कमजोर पाचन, मलाशय में छाले और दस्त की स्थिति में ये चिकित्सा नहीं लेनी चाहिए। इसके अलावा बच्चों, गर्भवती महिलाओं, वृद्ध और कमजोर व्यक्ति को भी विरेचन कर्म की सलाह नहीं दी जाती है।
विरेचन कर्म के बाद चावल और दाल का सूप दिया जाता है।